શ્રી રામચંદ્ર કૃપાળુ ભજ મન
હરણ ભવભય દારુણમ.
શ્રી રામચંદ્ર કૃપાળુ ભજ મન
હરણ ભવભય દારુણમ.
નવકંજ લોચન કંજ મુખ કર
કંજ પદ કંજારૂણમ્..
શ્રી રામચંદ્ર કૃપાળુ
કંદર્પ અગણિત અમિત છબિ,
નવ નીલ નીરજ સુંદરમ.
પટપિત માનહુ, તડિત રુચિ શુચિ,
નૌમિ જનક સુતાવરમ..
શ્રી રામચંદ્ર કૃપાળુ
ભજ દીન બંધુ દિનેશ
દાનવ દૈત્યવંશ નિકંદનમ્.
રઘુનંદ આનંદકંદ
કોસલચંદ દશરથ નંદનમ..
શ્રી રામચંદ્ર કૃપાળુ
સિર મુકુટ કુંડલ તિલક ચારુ,
ઉદારુ અંગ વિભૂષણમ.
આજાનુભુજ શર ચાપધર
સંગ્રામ જીત ખર દુષણમ..
શ્રી રામચંદ્ર કૃપાળુ
ઇતિ વદતિ તુલસીદાસ,
શંકર શેષ મુનિ મન રંજનમ.
મમ હૃદયકંજ નિવાસ કુરુ,
કામદિ ખલદલ ગંજનમ..
શ્રી રામચંદ્ર કૃપાળુ
મહાકવિ ગોસ્વામી તુલસીદાસ દ્વારા સોળમી સદીમાં રચાયેલી આરતી ભગવાન રામ ની સ્તુતિ માટે ।
[posts--tag:Prarthana Pothi--25]
[posts--tag:Prarthana Pothi--25]
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – हे मन, कृपालु (कृपा करनेवाले, दया करनेवाले) भगवान श्रीरामचंद्रजी का भजन कर हरण भवभय दारुणम्। – वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है – दारुण: कठोर, भीषण, घोर (frightful, terrible) नवकंज-लोचन – उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है कंज-मुख – मुख कमल के समान हैं कर-कंज – हाथ (कर) कमल के समान हैं पद-कंजारुणम्॥ – चरण (पद) भी कमल के समान हैं
कंदर्प अगणित अमित छबि, नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची, नौमि जनक सुतावरम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
कंदर्प अगणित अमित छबि – उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित (असंख्य, अनगिनत) कामदेवो से बढ़कर है नव नील नीरज सुन्दरम् – उनका नवीन नील नीरज (कमल, सजल मेघ) जैसा सुंदर वर्ण है पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची – पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है नौमि जनक सुतावरम् – ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ
भज दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
भजु दीन बन्धु दिनेश – हे मन, दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी दानव दैत्यवंश निकन्दनम् – दानव और दैत्यो के वंश का नाश करने वाले रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द – आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान दशरथ नन्दनम् – दशरथनंदन श्रीराम (रघुनन्द) का भजन कर
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु, उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु – जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, मस्तक पर तिलक और उदारु अङ्ग विभूषणम् – प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है आजानुभुज – जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है और शर चापधर – जो धनुष-बाण लिये हुए है. सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् – जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्॥
श्रीराम श्रीराम
इति वदति तुलसीदास – तुलसीदासजी प्रार्थना करते है कि शंकर शेष मुनि मन रंजनम् – शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले मम हृदयकंज निवास कुरु – रघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे जो कामादि खलदल गंजनम् – कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) शत्रुओ का नाश करने वाले है
-an aarti written by Goswami Tulsidas | in the sixteenth century |
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – हे मन, कृपालु (कृपा करनेवाले, दया करनेवाले) भगवान श्रीरामचंद्रजी का भजन कर हरण भवभय दारुणम्। – वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है – दारुण: कठोर, भीषण, घोर (frightful, terrible) नवकंज-लोचन – उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है कंज-मुख – मुख कमल के समान हैं कर-कंज – हाथ (कर) कमल के समान हैं पद-कंजारुणम्॥ – चरण (पद) भी कमल के समान हैं
कंदर्प अगणित अमित छबि, नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची, नौमि जनक सुतावरम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
कंदर्प अगणित अमित छबि – उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित (असंख्य, अनगिनत) कामदेवो से बढ़कर है नव नील नीरज सुन्दरम् – उनका नवीन नील नीरज (कमल, सजल मेघ) जैसा सुंदर वर्ण है पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची – पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है नौमि जनक सुतावरम् – ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ
भज दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
भजु दीन बन्धु दिनेश – हे मन, दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी दानव दैत्यवंश निकन्दनम् – दानव और दैत्यो के वंश का नाश करने वाले रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द – आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान दशरथ नन्दनम् – दशरथनंदन श्रीराम (रघुनन्द) का भजन कर
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु, उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
श्रीराम श्रीराम
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु – जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, मस्तक पर तिलक और उदारु अङ्ग विभूषणम् – प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है आजानुभुज – जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है और शर चापधर – जो धनुष-बाण लिये हुए है. सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् – जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनम्॥
श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्॥
श्रीराम श्रीराम
इति वदति तुलसीदास – तुलसीदासजी प्रार्थना करते है कि शंकर शेष मुनि मन रंजनम् – शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले मम हृदयकंज निवास कुरु – रघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे जो कामादि खलदल गंजनम् – कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) शत्रुओ का नाश करने वाले है
-an aarti written by Goswami Tulsidas | in the sixteenth century |
॥ Shriramachandra Kripalu॥
Śrīrāmacandra kr̥pālu bhajamanaharaṇa bhavabhayadāruṇaṁ.
Navakañjalocana kañjamukha karakañja padakañjāruṇaṁ. ।।1।।
Kandarpa agaṇita amita chavi navanīlanīradasundaraṁ.
Paṭapītamānahu taḍita ruciśuci naumijanakasutāvaraṁ. ।।2।।
Bhajadīnabandhu dinēśa dānavadaityavaṁśanikandanaṁ.
Raghunanda ānandakanda kośalachandra daśarathanandanaṁ. ।।3।।
Śiramukuṭakuṇḍala tilakacāru udāru'aṅgavibhūṣaṇaṁ.
Ājānubhuja śaracāpadhara saṅgrāmajitakharadūṣaṇaṁ. ।।4।।
Iti vadati tulasīdāsa śaṅkaraśeṣamunimanarañjanaṁ.
Mamahr̥dayakañjanivāsakuru kāmādikhaladalagañajanaṁ. ।।5।।
Śrīrāmacandra kr̥pālu bhajamanaharaṇa bhavabhayadāruṇaṁ.
Navakañjalocana kañjamukha karakañja padakañjāruṇaṁ. ।।1।।
Kandarpa agaṇita amita chavi navanīlanīradasundaraṁ.
Paṭapītamānahu taḍita ruciśuci naumijanakasutāvaraṁ. ।।2।।
Bhajadīnabandhu dinēśa dānavadaityavaṁśanikandanaṁ.
Raghunanda ānandakanda kośalachandra daśarathanandanaṁ. ।।3।।
Śiramukuṭakuṇḍala tilakacāru udāru'aṅgavibhūṣaṇaṁ.
Ājānubhuja śaracāpadhara saṅgrāmajitakharadūṣaṇaṁ. ।।4।।
Iti vadati tulasīdāsa śaṅkaraśeṣamunimanarañjanaṁ.
Mamahr̥dayakañjanivāsakuru kāmādikhaladalagañajanaṁ. ।।5।।